Thursday, December 8, 2011

...उदासी...

बिना पिए चढ़ी हैं मुझे,
पता नहीं क्यू, क्या हुआ हैं मुझे...
समुन्दर की लहेरे खींचती हैं अपनी ओर
लेकिन खुद को ख़त्म करने की इच्छा नहीं हैं मुझे...
मौत सामने बुला रही हैं लेकिन मरने की इच्छा नाही होती,
खूब मस्ती करने को दिल चाहता हैं,
साथ कोई नहीं लेकिन,
खूब मस्ती करूंगी मैं, चाहे मौत के साथ ही सही,
अब रोने का मन नहीं, खूब रोली आज तक,
अब बिना रोए मस्ती करुँगी मैं, 'सुकून मिलाने तक'!!
कल
भी सरे नफ़रत करतें थे, प्यार के साथ,
आज भी सारे नफ़रत करते हैं, शक के साथ...
कल भी मेरा जमाना था, शौहरत के साथ...
आज भी मेरा जमाना हैं, अपमान के साथ...
क्यू मुझसे चिढतें हैं सब? शादी करना क्या पाप हैं?
सबसे प्यार करने पर भी, मेरा ही दिल क्यू ख़राब हैं?