Monday, August 27, 2012

।। बेसब्र ।।

जाने कब तुम्हारी बाँहों मैं आऊँगी ...
जाने कब तुम्हारी पनाह पाऊँगी ...

जाने कब खत्म होंगी ये इंतजार की रातें ...
जाने कब मैं सुकून पाऊँगी ...

हर आया दिन, आई रात मुझे तडपाती  है ...
जाने कब ये आस पूरी होगी ...

मेरी शायरी झूठी लगाती है तुम्हें ...
जरा आजमा के देख इसे ...
ये तुम्हें मेरे पास खिंच लाएगी ...

मेरे प्यार की ये डोर इतनी भी कच्ची नहीं ... जो टूट जाए !!
जरा झटका लगा के देखो इसे ...

तुम खिंच आओगे ... मगर ... गिर नहीं पाओगे ... 

Thursday, December 8, 2011

...उदासी...

बिना पिए चढ़ी हैं मुझे,
पता नहीं क्यू, क्या हुआ हैं मुझे...
समुन्दर की लहेरे खींचती हैं अपनी ओर
लेकिन खुद को ख़त्म करने की इच्छा नहीं हैं मुझे...
मौत सामने बुला रही हैं लेकिन मरने की इच्छा नाही होती,
खूब मस्ती करने को दिल चाहता हैं,
साथ कोई नहीं लेकिन,
खूब मस्ती करूंगी मैं, चाहे मौत के साथ ही सही,
अब रोने का मन नहीं, खूब रोली आज तक,
अब बिना रोए मस्ती करुँगी मैं, 'सुकून मिलाने तक'!!
कल
भी सरे नफ़रत करतें थे, प्यार के साथ,
आज भी सारे नफ़रत करते हैं, शक के साथ...
कल भी मेरा जमाना था, शौहरत के साथ...
आज भी मेरा जमाना हैं, अपमान के साथ...
क्यू मुझसे चिढतें हैं सब? शादी करना क्या पाप हैं?
सबसे प्यार करने पर भी, मेरा ही दिल क्यू ख़राब हैं?

Tuesday, October 19, 2010

प्यार..

आया सुहाना मौसम, खत्म हो गया इंतजार,
आई मिलन की बेला, शुरू हुआ हैं प्यार...
भीगी बारिश मैं भीगे हम, वो ही क्या हम भी ना रहें हम,
बाँहों मैं उनके सिमट गए हैं, सांसो की गर्दिश मैं लुट गए हैं,
हाय ! वारी वारी गए हम...
ताजा एहसास दे गए वो, की "तुम सिर्फ हमारे हो सनम..."

Wednesday, August 11, 2010

मज़हब

मौसम हैं बारिश का, प्रकृति ले रही हिंडोला
खुश हैं सारा संसार, मयूर नाच रहे हैं पंख पसार,
लेकिन हूँ मैं उदास, ना भाए कोई रास
मेरे जीवन मैं नहीं हैं, कोई संग कोई ख़ास
कह रहा मन मोरा, सब कुछ हैं तेरे पास
फिर क्यू हैं तू इतनी उदास , तू अकेली क्या काफी नहीं...
इस संसार को झकझोर ड़ाल,
पहचान आपनी ताकद , ले हाथ मैं तरवार,
बिच आई कठिनाई को तू काट डाल,
तेरी हिम्मत हैं ताकद, तेरा परिश्रम हैं तेरी तरवार
कामयाबी काट डा़लेगी जो आता तुझे आड़
हारना तेरी प्रवृत्ति नहीं , आँसुओंसे तेरा रिश्ता नहीं
आशिक़ होंगे तेरे इस दुनियां मैं,
फिर तवज्जु तेरा मज़हब नहीं.....

Sunday, August 1, 2010

समाँ..

सावन की बुँदे गिरती हैं जमिनपर
महकती हैं सृष्टि सासों की नमीं पर
सूरज की किरनोंमे उमड़कर केतकी रंग
सजी हैं सृष्टि ओढ़कर सुनहरी तरंग
पंछी गा रहे सावन का संगीत
यही तो हैं वसंत का सुमधुर आगम गीत
प्रकृति पर छाया ऋतु वसंत का जादू
ओह! क्या समाँ छाया हैं, साधू! साधू!!!

Thursday, July 8, 2010

उसूल...

एक बार छोड़ी हुई जॉब पर फिर नहीं जाती मैं,
एक बार छोड़े हुए प्यार की तरफ़ फिर कभी मुड़ती नहीं मैं,
वो इन्सान ही क्या, जिसे अपने उसूलों से प्यार नहीं,
वो औरत ही क्या , जिसे अपने आत्मसम्मान की पर्वा नहीं॥
कोई कुछ भी कहें कोई कुछ भी सोचें...
यहीं उसूल हैं मेरा...
यहीं नियम हैं, मेरी जिंदगी का...
एक बार छोड़ दिया तो छोड़ दिया
लेकीन मुड़ने की वजह तो वो विषाद नहीं...जो उस चीज ने मुझे दिया ॥
अतीत में मुड़कर कुछ सीखना चाहिए हमें ...
न की रोते रोते जिंदगी का जहन्नुम बना देना इसे
यही सिख दी मुझे मेरी जिंदगीने
जिसने चलाना सिखाया... उसे तो प्यार करती हुँ मैं... ख़ुशी तो दूँगी ही उसे....
सकी खातिर उसुलोंको एक बार छोड़ती हूँ मैं॥
लेकिन हर बार आए तो उस ख़ुशी से ही मुंह मोड़ लुंगी मैं...
उसुलोंकी पक्की हुँ मैं,
एक बार छोड़ी हुई चीज को वापस अपना नहीं सकती हुँ में॥

Friday, June 25, 2010

एक आशा...

खुबसूरत हैं समां, क्यू उड़े ये मन मोरा,
याद किसी की दे जाये , हवा का एक ही झोंका,
हैं इसमें एक एहसास , उमंग से फूली हैं मेरी सांस,
कुछ कर दिखने की हैं मनशा,
कदम चल रहें हैं , ढूंढ़ रहें हैं सही दिशा,
झूम रहीं हैं मुझमें उम्मिद की हर एक आशा....