Sunday, August 1, 2010

समाँ..

सावन की बुँदे गिरती हैं जमिनपर
महकती हैं सृष्टि सासों की नमीं पर
सूरज की किरनोंमे उमड़कर केतकी रंग
सजी हैं सृष्टि ओढ़कर सुनहरी तरंग
पंछी गा रहे सावन का संगीत
यही तो हैं वसंत का सुमधुर आगम गीत
प्रकृति पर छाया ऋतु वसंत का जादू
ओह! क्या समाँ छाया हैं, साधू! साधू!!!

2 comments:

  1. कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।

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