Wednesday, August 11, 2010

मज़हब

मौसम हैं बारिश का, प्रकृति ले रही हिंडोला
खुश हैं सारा संसार, मयूर नाच रहे हैं पंख पसार,
लेकिन हूँ मैं उदास, ना भाए कोई रास
मेरे जीवन मैं नहीं हैं, कोई संग कोई ख़ास
कह रहा मन मोरा, सब कुछ हैं तेरे पास
फिर क्यू हैं तू इतनी उदास , तू अकेली क्या काफी नहीं...
इस संसार को झकझोर ड़ाल,
पहचान आपनी ताकद , ले हाथ मैं तरवार,
बिच आई कठिनाई को तू काट डाल,
तेरी हिम्मत हैं ताकद, तेरा परिश्रम हैं तेरी तरवार
कामयाबी काट डा़लेगी जो आता तुझे आड़
हारना तेरी प्रवृत्ति नहीं , आँसुओंसे तेरा रिश्ता नहीं
आशिक़ होंगे तेरे इस दुनियां मैं,
फिर तवज्जु तेरा मज़हब नहीं.....

2 comments:

  1. सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी

    ReplyDelete
  2. ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

    ReplyDelete