Sunday, June 20, 2010

हे जलसिन्धू...

मैं पिक बन गाती डाल-डाल ,
तू आता रहें हर बार - बार,
तुझे देखती रहू मैं भर नजर,
तू काहे तडपाएं मुझे हाल - हाल॥

तू आने से सृष्टि भर जाती नव ज्वार
रोमांचित होता कण - कण,
उल्हासीत होता गीत-गुंजन,
तू आया करें बस मेहरनज़र॥

आषाढ़ तू हैं, ग्रीष्म तू हैं,
मनभावन का श्रीकृष्ण तू हैं,
तेरे आने से बने सृष्टि नववधू,
बस आए अब तू हे जलसिंधू ॥

6 comments:

  1. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  3. netra ji bahu hi sunder hai aapka blog......
    maine to aapko follow bhi kar liya hai......

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  4. samay mile to mere blog par jaroor aye..

    dhanyawaad
    sanjay bhaskar
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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