Tuesday, March 30, 2010

हे मेरे आका...

किसीने नहीं पढ़ा हैं,
कोई नहीं पढेंगा
इन लफ्जों का राज़
राज़ बना रहेगा
- दुनियां के कोनों में,
हैं अँधेरा ही अँधेरा,
टिमटिमाता दिपक
क्या क्या रोशन करेगा...
- हैं हमें यकीं, आज नहीं तो कल,
हमसें कोई उठेगा!!
लेकिन हमारा ये प्रयास,
क्या सफल रहेगा?.....
या फिर हमें समझना पड़ेगा....
की, हे मेरे आका !!!
' अँधेरा कायम रहेगा'.............

3 comments:

  1. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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